दिल्ली में वायु प्रदूषण बेहद गंभीर हो गया है और बुधवार को वायु गुणवत्ता सूचकांक 418 तक पहुंच गया, जो बेहद गंभीर श्रेणी का माना जाता है। अजरबैजान की राजधानी बाकू में पर्यावरण को लेकर कॉप29 का सम्मेलन हो रहा है। दिल्ली के प्रदूषण का मामला बाकू में कॉप29 की बैठक में भी उठा और पर्यावरण विशेषज्ञों ने इस पर चिंता जाहिर की।

    क्या हैं अल्पकालिक जलवायु प्रदूषण (SLCP)
    COP29 जलवायु शिखर सम्मेलन में विशेषज्ञों ने भारत से अल्पकालिक जलवायु प्रदूषकों (SLCPs) जैसे मीथेन और ब्लैक कार्बन को कम करने की अपील की। अल्पकालिक जलवायु प्रदूषकों को वायु गुणवत्ता में गिरावट और ग्लोबल वार्मिंग दोनों के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार माना जाता है। गौरतलब है कि अल्पकालिक जलवायु प्रदूषक (SLCPs) ग्रीनहाउस गैसों और वायु प्रदूषकों का एक समूह है, जिन्हें जलवायु परिवर्तन के लिए प्रमुख तौर पर जिम्मेदार माना जाता है। ये प्रदूषक वायु गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं। इनमें ब्लैक कार्बन, मीथेन, भू-स्तरीय ओजोन और हाइड्रोफ्लोरोकार्बन आदि शामिल हैं। इंस्टीट्यूट फॉर गवर्नेंस एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट (IGSD) में इंडिया प्रोग्राम के निदेशक जेरिन ओशो और IGSD के अध्यक्ष डरवुड जेलके ने इस बात पर प्रकाश डाला कि SLCP में कमी लाकर वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटा जा सकता है।

    एसएलसीपी को कम करके वायु प्रदूषण की गंभीरता को किया जा सकता है कम
    डरवुड जेलके ने कॉप29 सम्मेलन के दौरान एक बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि अल्पकालिक जलवायु प्रदूषकों पर रोक लगाकर हम वायु प्रदूषण की गंभीरता को कम कर सकते हैं और साथ ही इससे कार्बन उत्सर्जन को करने करने के लिए जरूरी समय भी मिल जाएगा। उन्होंने कहा कि एसएलसीपी पर रोक लगाना बेहद जरूरी है क्योंकि वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी लगभग हो चुकी है और इस साल के आंकड़ों से पता चलता है कि वैश्विक तापमान जल्द ही इस सीमा को पार कर जाएगा। एसएससीपी पर नियंत्रण के लिए इलेक्ट्रिक बसों, एयर कंडीशनर और कुकस्टोव के लिए रणनीतियां बनाने की सिफारिश की गई।

    जलवायु परिवर्तन का भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा विपरीत असर
    इंस्टीट्यूट फॉर गवर्नेंस एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट (IGSD) में इंडिया प्रोग्राम के निदेशक जेरिन ओशो ने बैठक के दौरान कहा कि जलवायु परिवर्तन के चलते भारत की आर्थिक और पर्यावरणीय स्थिरता प्रभावित हो रही है और इसका असर श्रम क्षेत्र, कृषि और खाद्य सुरक्षा पर विपरीत असर पड़ रहा है। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, भारत में जलवायु परिवर्तन के असर से असंगठित श्रेत्र में तीन करोड़ से ज्यादा नौकरियां प्रभावित हुई हैं। साथ ही इसका असर मानसून के पैटर्न पर भी हुआ है, जिससे फसल चक्र बाधित हो रहा है।