भारत ने दी जानकारी, 2016 में पहला मामला
डब्ल्यूएचओ का कहना है कि एचवीकेपी को लेकर भारत ने बताया कि भारत में साल 2015 से इस रोगाणु को आइसोलेट यानी पृथक करने का प्रयास किया जा रहा है। यहां पहली बार कार्बेपनेम-प्रतिरोधी एचवीकेपी रोगाणु की पहचान 2016 में एक मरीज में हुई। इसके बाद रोगाणुरोधी प्रतिरोध को लेकर प्रयास तेज हुए हैं। हालांकि जिला और तहसील
स्तर की स्वास्थ्य सेवाओं में अभी भी इन्हें लेकर जानकारियों का अभाव है। हालांकि भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि नए स्ट्रेन की पहचान के लिए आईसीएमआर की एक पूरी टीम कार्य कर रही है।
ऐसे चकमा दे रहा नया रोगाणु
डब्ल्यूएचओ ने बताया कि अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों में क्लेबसिएला निमोनिया नामक संक्रमण होना आम है। इसके दो स्वरूप है जिसमें पहला हाइपर विरुलेंट क्लेबसिएला निमोनिया (एचवीकेपी) और दूसरा क्लासिक के. निमोनिया (सीकेपी) है। यहां सबसे बड़ी चुनौती यह है कि मौजूदा समय में हमारे पास प्रयोगशालाएं इनके बीच अंतर करने में असमर्थ हैं। जब कोई मरीज कार्बेपनेम-प्रतिरोध के चलते क्लेबसिएला निमोनिया से संक्रमित हुआ है और उसमें हाइपर विरुलेंट स्ट्रेन भी है तो मरीज की जान का जोखिम कई गुना अधिक बढ़ सकता है।