भारत में इन्सानों के साथ-साथ वन्यजीव भी जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हो रहे हैं। भारतीय वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि नर वानरों पर इसका काफी बुरा असर पड़ रहा है, जिससे न सिर्फ इनकी आबादी में भारी गिरावट आ रही है, बल्कि इनका व्यवहार भी बदल रहा है। अब ये पहले की तुलना में ज्यादा चिड़चिड़े हो रहे हैं।हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्युलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) के वैज्ञानिकों ने नर वानरों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने के लिए पूर्वोत्तर राज्यों में नौ प्रजातियों पर अध्ययन किया है, जिसमें जीनोमिक डाटा विश्लेषण भी शामिल है। इसमें पता चला है कि चार प्रजाति मकाका, ट्रैचीपिथेकस, हूलॉक और निक्टिसबस को छोड़ बाकी पांच की आबादी लगातार कम होती जा रही है। इन चारों प्रजातियों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव दूसरे तरीके से दिख रहा है। इनके व्यवहार में नया बदलाव आ रहा है और नई पीढ़ी में भी इसकी झलक देखने को मिल रही है।

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वन्यजीवों के लिए भी नीतियों की जरूरत
वैज्ञानिकों ने इस अध्ययन के जरिये सरकार को सलाह दी है कि इन्सानों के साथ साथ वन्यजीवों को लेकर भी नीतियों पर काम करना चाहिए। जलवायु परिवर्तन के लिए प्रजाति वार संरक्षण मॉडल तैयार करना चाहिए। यह अध्ययन इकोलॉजी एंड एवुलेशन जर्नल में प्रकाशित हुआ है। दरअसल, भारत में 24 प्रजातियों के साथ नर वानरों  की एक विस्तृत विविधता पाई जाती है, जिनमें लोरीज, मकाक, लंगूर और गिब्बन शामिल हैं। भारत में नर वानरों पर व्यवस्थित शोध लगभग 60 साल पहले शुरू हुए।

नौ प्रजातियों का अध्ययन
सीसीएमबी के वरिष्ठ वैज्ञानिक गोविंद स्वामी उमापति ने बताया कि विभिन्न जीवों की आबादी कैसे बढ़ती है, इसके लिए जलवायु महत्वपूर्ण है। इसलिए दो जलवायु प्लीयोसीन और प्लेस्टोसिन के दौरान पूर्वोत्तर भारत में पाई जाने वाली नौ नर वानर प्रजातियों के जनसंख्या इतिहास के बारे में यह अध्ययन किया गया।

पहले से ज्यादा तेज हुआ प्रभाव
गोविंद स्वामी ने बताया कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पूरी दुनिया बीते कई दशक से झेल रही है, लेकिन अब यह तेज हो रहा है। धरती का बढ़ता ताप, मौसम चक्र में बदलाव, भीषण गर्मी और सूखाग्रस्त क्षेत्रों में बाढ़, मच्छर और जल जनित बीमारियों का प्रकोप जैसे कई उदाहरण हैं जो जलवायु परिवर्तन के जोखिमों के बारे में बता रहे हैं। वन हेल्थ के जरिये सरकार ने सभी जीवों को लेकर प्रयास भी शुरू किए हैं।