साल 2024 सियासी तौर पर बेहद चौंकाने वाला रहा और इस साल के चुनावी नतीजों ने साबित कर दिया कि देश की जनता को साधना इतना भी आसान नहीं है। जनता ने लोकसभा चुनाव से लेकर विभिन्न विधानसभा चुनाव तक ऐसा जनादेश दिया, जिसका अंदाजा राजनीति के बड़े-बड़े विश्लेषक भी नहीं लगा पाए। तो आइए जानते हैं कि 2024 को सियासी पिच पर चौंकाने वाले साल के रूप में क्यों याद किया जाएगा।
लोकसभा के नतीजों ने एनडीए को दिया झटका
इस साल 18वीं लोकसभा के चुनाव हुए। चुनाव से पहले देश में भाजपा की हवा होने का दावा किया जा रहा था और खुद भाजपा भी आत्मविश्वास से लबरेज थी। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भाजपा ने चुनाव से पहले नारा दिया कि ‘इस बार 400 पार’। विभिन्न राजनीतिक पंडितों ने भी माना कि भाजपा रिकॉर्ड सीटें जीत सकती है और भाजपा के नेतृत्व में एनडीए का आंकड़ा 400 पार जा सकता है। हालांकि जब नतीजे आए तो सभी हैरान रह गए। भाजपा बहुमत का आंकड़ा भी नहीं छू सकी और महज 240 सीटों पर सिमट गई। हालांकि तेदेपा और जदयू और अन्य सहयोगी दलों की मदद से भाजपा तीसरी बार केंद्र की सत्ता पर काबिज होने में सफल रही।
संविधान को लेकर नैरेटिव गढ़ने में कामयाब रहा विपक्ष
आम चुनाव के नतीजों के बाद प्रधानमंत्री की लोकप्रियता में गिरावट आने का दावा किया गया। हालांकि लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों ने साफ कर दिया है कि प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता अभी भी बरकरार है और वे अभी भी देश के सर्वमान्य नेता हैं। आम चुनाव के दौरान विपक्षी गठबंधन ने आरोप लगाया कि भाजपा को बंपर बहुमत मिला तो वे संविधान बदल देंगे। विपक्ष चुनाव प्रचार में संविधान को लेकर ऐसा नैरेटिव गढ़ने में सफल रहा और यही वजह रही कि जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण जैसे क्रांतिकारी फैसलों के बाद भी भाजपा अकेले दम पर बहुमत का आंकड़ा नहीं छू सकी। देश की हिंदी बेल्ट को भाजपा का मजबूत गढ़ माना जाता है, लेकिन हैरानी की बात ये है कि हिंदी बेल्ट के ही सबसे अहम राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा को सबसे बड़ा झटका लगा। उत्तर प्रदेश में भाजपा महज 33 सीटें जीत सकी, जबकि 2019 के आम चुनाव में भाजपा ने यूपी की 80 में से 62 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
गठबंधन की राजनीति की वापसी
देश में गठबंधन राजनीति का लंबा इतिहास रहा, लेकिन 2014 और 2019 के आम चुनाव में भाजपा की प्रचंड जीत के बाद ऐसा माना जा रहा था कि देश से गठबंधन राजनीति की विदाई हो चुकी है और लोग अब किसी भी पार्टी को निर्णायक जनादेश देना पसंद करते हैं। 2024 के चुनाव में भी यही उम्मीद थी कि जनता स्पष्ट बहुमत देगी, लेकिन चुनाव नतीजों ने सारी उम्मीदों को ध्वस्त करते हुए गठबंधन राजनीति को फिर से जिंदा कर दिया। पिछले दो कार्यकाल में बंपर जनादेश पाने वाली भाजपा इस बार गठबंधन के साथियों पर निर्भर है। वहीं विपक्ष भी गठजोड़ बनाकर सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा है।
ओडिशा में नवीन पटनायक का 20 साल का शासन हुआ समाप्त
लोकसभा चुनाव के साथ ही ओडिशा और आंध्र प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी हुए। ओडिशा चुनाव के नतीजे भी खास रहे और राज्य में बीते 24 वर्षों से सत्ता पर काबिज नवीन पटनायक की पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। ओडिशा में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और पार्टी ने राज्य की 147 विधानसभा सीटों में से 78 पर जीत दर्ज की। वहीं नवीन पटनायक की बीजद 51 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी। आंध्र प्रदेश में भी तेदेपा की जीत की उम्मीद थी, लेकिन नतीजे आए तो सब हैरान रह गए क्योंकि चुनाव में वाईएसआरसीपी का लगभग सूपड़ा साफ हो गया।
हरियाणा ने कांग्रेस को रुलाया
इस साल हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव हुए जिनके नतीजों ने सभी राजनीतिक पंडितों को गलत साबित कर दिया। पिछले 10 साल से हरियाणा की सत्ता पर काबिज भाजपा के इस बार सत्ता विरोधी लहर और किसानों के विरोध के चलते हारने की भविष्यवाणी की जा रही थी। वहीं भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में कांग्रेस की जीत के दावे किए जा रहे थे, लेकिन चुनाव नतीजों ने सभी को चौंकाते हुए भाजपा को विजेता बना दिया। नायब सिंह सैनी राज्य के मुख्यमंत्री बने।
महाराष्ट्र में चला ‘एक हैं तो सेफ हैं’ का जादू
हालिया नवंबर में महाराष्ट्र विधानसभा के नतीजों ने पूरे साल चुनाव नतीजों के ट्रेंड को बरकरार रखते हुए ये साबित कर दिया कि हमारे देश का लोकतंत्र काफी मजबूत है और इसे लेकर पूर्वानुमान लगाना इतना भी आसान नहीं है। महाराष्ट्र चुनाव में भाजपा के नेतृत्व में शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी वाले महायुति गठबंधन ने प्रचंड जीत हासिल की। वहीं जनता की सहानुभूति की उम्मीद लगाए बैठीं उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की शिवसेना को बुरी हार का सामना करना पड़ा। दोनों पार्टियों ने लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया था और उस प्रदर्शन से उत्साहित इन पार्टियों के नेतृत्व ने विधानसभा चुनाव में जीत का दावा कर दिया था, लेकिन चुनाव नतीजों ने पूरी बाजी ही पलट दी। कांग्रेस की हालत भी पिछले चुनाव की तरह इस बार भी खराब रही। देवेंद्र फडणवीस राज्य के नए सीएम बने हैं।
इनके अलावा जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव में अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले के बाद भाजपा को बहुमत की उम्मीद थी, लेकिन वो पूरी न हो सकी। वहीं झारखंड में भी भाजपा को झटका लगा और हेमंत सोरेन की सरकार की सत्ता में वापसी हुई। उपचुनाव में भी कई सीटों पर हैरान करने वाले नतीजे देखने को मिले। खासकर यूपी में लोकसभा चुनाव में 37 सीटें जीतने वाली सपा को हाल ही में सात सीटों पर हुए उपचुनाव में महज दो सीटों से ही संतोष करना पड़ा।