अमेरिका में फार्मा आयात पर अगर टैरिफ बढ़ता है तो इसका भारतीय दवा निर्माताओं पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि इससे उत्पादन लागत बढ़ जाएगी। इससे अन्य देशों की तुलना में घरेलू कंपनियों को प्रतिस्पर्धा करने में दिक्कत होगी। कम मार्जिन पर काम करने वाली छोटी कंपनियों को भारी दबाव का सामना करना पड़ सकता है। उन्हें कारोबार बंद करने के लिए बाध्य होना पड़ सकता है।

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मंगलदास एंड कंपनी के पार्टनर अरविंद शर्मा ने दी जानकारी
शार्दुल अमरचंद मंगलदास एंड कंपनी के पार्टनर अरविंद शर्मा ने कहा, भारत वर्तमान में अमेरिकी दवाओं पर करीब 10 प्रतिशत आयात शुल्क लगाता है, जबकि अमेरिका भारतीय दवाओं पर कोई आयात शुल्क नहीं लगाता है। अमेरिका दवाओं का शुद्ध आयातक रहा है।

अगर वह भारत से दवा आयात पर भारी शुल्क लगाता है, तो इसका असर भारतीय दवा क्षेत्र में स्पष्ट रूप से दिखाई देगा और घरेलू खपत भी बाधित होगी। 2022 में अमेरिका में हर 10 में से चार दवाएं भारतीय कंपनियों की ओर से आपूर्ति की गई हैं। भारतीय कंपनियों की दवाओं से 2022 में अमेरिकी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को 219 अरब डॉलर की बचत हुई है। 2013 से लेकर 2022 के बीच 1.3 लाख करोड़ डॉलर की बचत हुई थी।

रेपो दर घटने से एसएमई उद्योगों को मिलेगा फायदा
महंगाई घटने से अप्रैल में आरबीआई की होने वाली मौद्रिक नीति की बैठक में भी रेपो दर में कटौती की उम्मीद है। अगर ऐसा होता है तो छोटे-मझोले उद्योगों (एसएमई) को फायदा होगा। एक्सिस बैंक के कार्यकारी उपाध्यक्ष विजय शेट्टी ने कहा, छोटे उद्योगों के फंड की लागत कम हो रही है। इससे उनका मार्जिन बढ़ेगा। सभी छोटे उद्योग रेपो दर के अंतर्गत हैं, इसलिए उन्हें लाभ मिलेगा। तीसरी तिमाही तक एक्सिस बैंक ने छोटे उद्योगों को 2.22 लाख करोड़ का कर्ज दिया था। सितंबर, 2020 से बैंक का एसएमई कर्ज 29 फीसदी चक्रवृद्धि दर से बढ़ा है। उन्होंने कहा, अनिश्चितता के दौर में भारत अन्य देशों की तुलना में बेहतर जगह है। सरकार के प्रयासों से अब चालू खाता खोलने में हम केवल तीन मिनट लगाते हैं।