फरीदकोट(विपन मितल) : धान और गेहूं के अवशेष यानी पराली को बिना आग लगाए खेत में मिलाने से फसल का उत्पादन बढ़ता है, साथ में फसल की लागत भी घटती है। पराली प्रबंधन पर्यावरण को स्वच्छ रखने में मदद करता है।उक्त बात फरीदकोट जिले के ग्राम बग्गेना कोटकपूरा के प्रगतिशील एवं पर्यावरणविद किसान जगसीर सिंह ने कहीं। उन्होंने कहा कि बीए पूरा करने के बाद, वह अपने खेती पर ध्यान केंद्रित कर और कृषि, किसान कल्याण, फरीदकोट और अन्य पर्यावरणविदों विभाग से प्रेरित करना शुरू कर दिया है, वह अपने खेतों से धान की पराली को खेत में मिलाकर खेती शुरू कर दिया।

    मचलर रोटावेटर का प्रयोग पराली को खेत में मिलाने के लिए उन्होंने किया। उन्होंने कहा कि इस संबंध में अपने परिवार को प्रेरित करने के लिए कड़ी मेहनत की, जबकि गांव और आसपास के लोग उनकी पहल का मजाक उड़ाते थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अब 20 साल से अधिक हो गए हैं।

    उन्होंने पुआल प्रबंधन के विभिन्न तरीकों को अपनाया, कृषि विभाग द्वारा निर्धारित कृषि उपकरण, जैसे रोटावेटर, मलचर और अब बेलर का उपयोग गांठ बनाने के लिए किया जाता है। उन्होंने कहा कि अब क्षेत्र के किसान भी पराली के प्रबंधन और पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति जागरूक हो रहे हैं, और अब पराली जलाने की घटनाओं में भी काफी हद तक कमी आई है।

    उन्होंने लोगों से पर्यावरण, मानव स्वास्थ्य का ध्यान रखने, वनस्पतियों और जीवों के हित में पराली को न जलाने की अपील की क्योंकि इसकी आग व धुंआ मानव के साथ-साथ जानवरों व पर्यावरण के लिए नुकसानदायक है। किसान जगसीर के प्रयासों को सराहा जिला मुख्य कृषि अधिकारी डा. बलविदर सिंह, एडीओ यदविदर सिंह, डा. अमन दीप केशव और डा. रमनदीप सिंह संधू ने पराली में आग लगाने के लिए किसान जगसीर सिंह के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि जगसीर सिंह और जिले के ऐसे अन्य प्रगतिशील किसान दूसरों के लिए भी प्रेरणा स्त्रोत बने है।