अमेरिका में एक संघीय न्यायाधीश ने ट्रंप सरकार को यूएसएड और विदेश विभाग के साझेदारों को 2 अरब डॉलर का भुगतान करने के लिए सोमवार तक का समय दिया है। गुरुवार को आए इस फैसले के साथ ही, प्रशासन की ओर से विदेशी सहायता पर लगाई गई छह सप्ताह की रोक भी खत्म हो गई है। यह फैसला ट्रंप सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।अमेरिकी जिला न्यायाधीश आमिर अली ने उन गैर-लाभकारी समूहों और व्यवसायों के पक्ष में फैसला सुनाया, जिन्होंने फंडिंग बंद किए जाने के खिलाफ मुकदमा दायर किया था। प्रशासन के इस कदम से दुनिया भर के संगठनों को सेवाओं में कटौती करने और हजारों श्रमिकों को नौकरी से निकालने पर मजबूर होना पड़ा है। मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने सवाल उठाए हैं, उससे ट्रम्प प्रशासन के उस तर्क पर संदेह प्रकट होता है कि राष्ट्रपतियों के पास विदेशी सहायता सहित विदेश नीति के मामले में खर्च पर कांग्रेस के निर्णयों को दरकिनार करने का व्यापक अधिकार है।
अली ने सरकार के इस तर्क पर टिप्पणी करते हुए कहा, “यह कहना धरती हिला देने वाला, देश हिला देने वाला प्रस्ताव होगा कि विनियोजन वैकल्पिक हैं।” उन्होंने सरकारी वकील इंद्रनील सूर से पूछा, “मेरा आपसे सवाल यह है कि आप संवैधानिक दस्तावेज में यह बात कहां से ला रहे हैं?” गुरुवार का आदेश एक ऐसे मामले में दिया गया है, जिसमें प्रशासन की ओर से दुनिया भर में यूएसएआईडी के 90 प्रतिशत अनुबंधों को तेजी से समाप्त करने से जुड़े और निर्णय आने वाले हैं।
संघीय न्यायाधीश का अली का यह फैसला यूएसएआईडी के माध्यम से मिलने वाली फंडिंग को रोकने के ट्रम्प प्रशासन की ओर से प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज किए जाने के एक दिन बाद आया है। उच्च न्यायालय ने अली को यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया है कि सरकार को उनके पिछले आदेश का पालन करने के लिए क्या करना चाहिए, जिसमें पहले से किए गए काम के लिए फंड को तुरंत जारी करने को कहा गया था।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की ओर से 20 जनवरी को हस्ताक्षरित एक कार्यकारी आदेश के तहत इस धनराशि पर रोक लगाई गई थी। इस मामले में प्रशासन ने अपील तब की जब अली ने एक अस्थायी रोक आदेश जारी किया और पहले से किए गए कार्य के लिए भुगतान जारी करने की समय सीमा तय की। प्रशासन ने कहा कि उसने व्यय पर पूरी तरह रोक लगाने के स्थान पर व्यक्तिगत निर्धारण को लागू कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप 5,800 यूएसएआईडी अनुबंध और 4,1000 विदेश विभाग अनुदान रद्द कर दिए गए, जिस मद में लगभग 60 अरब डॉलर खर्च होते हैं।